सिन्धु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख नगर अवशेष, जिसकी खोज १९२२ ईस्वी मे राखाल दास बनर्जी ने की। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे सक्खर जिले में स्थित है। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है 'मोअन जो दड़ो'। सिन्धी भाषा में इसका अर्थ है - मृतको का टीला।
मोहन जोदड़ो- (सिंधी:موئن جو دڙو और उर्दू में अमोमअ मोहनजोदउड़ो भी) वादी सिंध की क़दीम तहज़ीब का एक मरकज़ था। ये लाड़ काना से बीस किलोमीटर दूर और सिखर से 80 किलोमीटर जनूब मग़रिब में वाक़िअ है। ये वादी सिंध के एक और अहम मरकज़ हड़पह से 400 मेल दूर है ये शहर 2600 क़बल मसीह मौजूद था और 1700 क़बल मसीह में नामालूम वजूहात की बिना पर ख़त्म होगया।ताहम माहिरीन के ख़्याल में दरयाऐ सिंध के रख की तबदीली, सैलाब, बैरूनी हमला आवर या ज़लज़ला अहम वजूहात हो सकती हैं।
मोिन जो दड़ओ- को 1922ए में बर्तानवी माहिर आसार क़दीमा सर जान मार्शल ने दरयाफ़त क्या और इन की गाड़ी आज भी मोिन जो दड़ओ- के अजायब ख़ाने की ज़ीनत है।
लेकिन एक मकतबा फ़िक्र ऐसा भी है जो इस तास्सुर को ग़लत समझता है और इस का कहना है कि उसे ग़ैर मुनक़िसम हिंदूस्तान के माहिर आसार क़दीमा आर के भिंडर ने 1911ए में दरयाफ़त क्या था। मोिन जो दड़ओ- कनज़रवेशन सेल के साबिक़ डायरेक्टर हाकिम शाह बुख़ारी का कहना है कि"आर के भिंडर ने बुध मत के मुक़ामि मुक़द्दस की हैसीयत से इस जगह की तारीख़ी हैसीयत की जानिब तवज्जा मबज़ूल करवाई, जिस के लग भग एक अशरऐ बाद सर जान मार्शल यहां आए और उन्हों ने इस जगह खुदाई शुरू करवाई।" [१]
मोिन जो दड़ओ- सिंधी ज़बान का लफ्ज़ है जिस का मतलब मुरदों का टीला है।
ये शहर बड़ी तरतीब से बसा हुआ था। इस शहर की गलियां खुली और सीधी थीं और पानी की निकासी का मुनासिब इंतिज़ाम था। अंदाज़अ इस में 35000 के क़रीब लोग रिहाइश पज़ीर थे।
माहिरीन के मुताबिक ये शहर 7 मरत्तबा उजड़ा और दुबारा बसाया गया जिस की अहम तरीन वजह दरयाऐ सिंध का सैलाब था।
ये शहर अक़वाम मुतहदा के इदारा बराए तालीम, साईंस ओ- सक़ाफ़त योनीसको की जानिब से आलमी विरसा क़रार दिए गए मुक़ामात में शामिल हऐ

प्रस्तुतकर्ता Vinod Bhana रविवार, 12 दिसंबर 2010

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